तेरी दास्तां
ख्वाबों की नगरी हक़ीक़त बनाने जो
ए दिल इक दिन का ये क़िस्सा नहीं
खुद के होने की पहेली सुलझाने
जो ए दिल इक का ये क़िस्सा नहीं
कदमों में जमा जो थकान
चैन की नींदें आती वहाँ
कदमों में जमा जो थकान
चैन की नींदें आती वहाँ
इतनी सुहानी बना
हो न पुरानी तेरी दास्तां
हं अहह हं अहह
हम तो न कहते अँधेरा कहता
जुगनू में रहता इक तारा रहता
हम तो न कहते अँधेरा कहता
जुगनू में रहता इक तारा रहता
आंसू मोती खर्चो न
खामिया ख़ास समझो न
इतनी सुहानी बना
हो न पुरानी तेरी दास्तां
सुन लो न ग़लतियों का है कहना
नादानियों में तजुर्बा बैठा
जज़्बातों की बातों में न आना
जज़्बाती नज़रों को दीखता धुंधला
आंसू मोती खर्चो न
खामियां ख़ास समझो न
इतनी सुहानी बना
हो न पुरानी तेरी दास्तां
चंदा तक पक्का सा रास्ता बनाना जो है
ए दिल इक दिन का ये क़िस्सा नहीं
बंद दिल बाहों को है खुलना सिखाना जो
ए दिल इक दिन का ये क़िस्सा नहीं
हं हं हं हं
हो न पुरानी तेरी दास्तां