Marjabak To Kuthe
MAJROOH SULTANPURI, NAGRATH RAJESH ROSHAN
मरजाबक तो कुठे रुबिया मीत रे
मरजाबक तो कुठे रुबिया मीत रे
मरजाबक तो कुठे रुबिया मीत रे
बड़े दिनों में मिला है मौका
छुपके बैठी कहा
कहा मैं जाउंगी वही तो आउंगी
पिया बुलाये जहा
आती हु पहले तो उसे निकलू
जो पैरों में कांटा लगा हुयी
हाय रे बेचारी कहा का कांटा था
और कहा जा लगा है
मरजाबक तो कुठे अब रुबिया मीत रे
मरजाबक तो कुठे रुबिया मीत रे
तेरे बिना चारो और छाया अँधेरा
कहा थी लालटैन मेरी
दिन को चैन है न रातों को चैन है
जालु रे लगन में तेरी
आजा नज़र आज ऐसे मिलाये के
दिन उतरे न हटे
आजा दिल की लगी ऐसे बुझा
ले के रोज़ का झगडा मिटे
मरजाबक तो कुठे रुबिया मीत रे
मरजाबक तो कुठे रुबिया मीत रे