Musafir Raah Kar Paida
मुसाफिर रहकर पैदा
खुदा मंज़िल बनाएगा
चिरागो को सिकासने दे
सवेरा मुस्कुराएगा
ओ मुसाफिर ओ
ना शिकवा कर ज़माना अगर
तुझे ठोकर लगता है
संभालने के लिए इंसान
यहा ठोकर भी ख़ाता है
ज़रा दो ठोकरे खा ले
संभालना आ ही जाएगा
मुसाफिर रहकर पैदा
खुदा मंज़िल बनाएगा
ओ मुसाफिर ओ
अकेला क्यू भतकता है
बना ले करवा कोई
बढ़ता जा कदम आयेज
बनता जा निसा कोई
समाज कर रहनुमा
तुझको ज़माना साथ आएगा
मुसाफिर रहकर पैदा
खुदा मंज़िल बनाएगा
ओ मुसाफिर ओ
सवेरा मुस्कुराएगा
नया पैगाम लाएगा
तेरे गम को मिटाएगा
अंधेरा बात खाएगा
मुक़दार जगमगाएगा
जगमगाएगा जगमगाएगा