Mamta Se Bhari

Manoj Muntashir

ममता से भरी तुझे छाओं मिली
जुग जुग जीना तू बाहुबली

है जहां विष और अमृत भी
मन वो मंथन छलिये

महिष पति का वंशज वो
जिसे कहते बाहुबली
रणमें वो ऐसे टूटे
जैसे टूटे कोई बिजली

है जहाँ विष और अमृत भी
मनन व मंथन स्थली

तलवारें जब वो लहराएं
छत्र बिन मस्तक हो जाए
शत्रु दल ये सोच न पाये
जाए
बच के
कहाँ

माता है भाग्य विधाता
मुल्लाह साथी कहलाता
ऐसा अधभुत वो राजा
सबका
मन जो
जीते वो
शाशन वही सिर्गामी कहे जो
रण दोनों धरम का
मन निछलता हर क्षण

है जहाँ विष और अमृत भी
मन व मंथन स्थली

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