Do Sondhe Sondhe Se Jism

GULZAR

दो सोंधे-सोंधे से जिस्म जिस वक़्त एक मुठी में सो रहे थे
दो सोंधे-सोंधे से जिस्म जिस वक़्त एक मुठी में सो रहे थे
लबों की मद्धम तवील सरगोशियों में साँसे उलझ गई थीं
मुँदे हुए साहिलों पे जैसे कहीं बहुत दूर ठंडा सावन बरस रहा था
बस एक ही रूह जागती थी
बता तो उस वक़्त मैं कहाँ था
बता तो उस वक़्त तू कहाँ थी

Trivia about the song Do Sondhe Sondhe Se Jism by Gulzar

Who composed the song “Do Sondhe Sondhe Se Jism” by Gulzar?
The song “Do Sondhe Sondhe Se Jism” by Gulzar was composed by GULZAR.

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