Mere Kapdon Mein Tanga Hai
GULZAR
मेरे कपड़ों में टंगा है
तेरा ख़ुश-रंग लिबास
घर पे धोता हूँ हर बार उसे और सुखा के फिर से
अपने हाथों से उसे इस्त्री करता हूँ मगर
इस्त्री करने से जाती नहीं शिकनें इस की
और धोने से गिले-शिकवों के चिकते नहीं मिटते
ज़िंदगी किस क़दर आसाँ होती है
रिश्ते गर होते लिबास
और बदल लेते क़मीज़ों की तरह