Khud KO Padhta Hoon

HARIHARAN, TAHIR FARAZ

खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ
खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ
एक वरक रोज़ मोड़ देता हूँ, ऊ ऊ ऊ
खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ
एक वरक रोज़ मोड़ देता हूँ, ऊ ऊ ऊ
खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ

इस कदर ज़ख्म हैं निगाहों में
इस कदर ज़ख्म हैं निगाहों में
इस कदर ज़ख्म हैं निगाहों में, ए ए ए ए
रोज़ एक आईना तोड़ देता हूँ
रोज़ एक आईना तोड़ देता हूँ
एक वरक रोज़ मोड़ देता हूँ, ऊ ऊ ऊ
खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ

कांपते होठ भीगती पलकें
कांपते होठ भीगती पलकें
कांपते होठ भीगती पलकें
बात अधूरी ही छोड़ देता हूँ
बात अधूरी ही छोड़ देता हूँ
एक वरक रोज़ मोड़ देता हूँ
खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ

रेत के घर बना बना के फराज़
रेत के घर बना बना के फराज़
रेत के घर बना बना के फराज़
जाने क्यूँ खुद ही तोड़ देता हूँ
जाने क्यूँ खुद ही तोड़ देता हूँ
एक वरक रोज़ मोड़ देता हूँ, ऊ ऊ ऊ
खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ
खुद को पढ़ता हैं छोड़ देता हूँ, ऊ ऊ ऊ

Trivia about the song Khud KO Padhta Hoon by Hariharan

When was the song “Khud KO Padhta Hoon” released by Hariharan?
The song Khud KO Padhta Hoon was released in 1997, on the album “Jashn”.
Who composed the song “Khud KO Padhta Hoon” by Hariharan?
The song “Khud KO Padhta Hoon” by Hariharan was composed by HARIHARAN, TAHIR FARAZ.

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