Achra Mein Phoolva

Ravindra Jain

अचरा में फुलवा लई के
आये रे हम तोहरे द्वार
अरे हो हमरी अरजी न सुन ले
अरजी पे कर ले ना बिचार
हमसे रूठ ले बिधाता हमार
काहे रूठ ले बिधाता हमार

बड़े ही जतन से हम ने पूजा का थाल सजाया
प्रीत की बाती जोरी मनवा का दियरा जराया
हमरे मन मोहन को पर नहीं भाया
हमरे मन मोहन को पर नहीं भाया
अरे हो रह गइ पूजा अधूरी
मन्दिर से दिया रे निकाल
हमसे रूठ ले बिधाता हमार
हो काहे रूठ ले बिधाता हमार

सोने की कलम से हमरी किस्मत लिखी जो होती
मोल लगा के लेते हम भी मन चाहा मोती
एक प्रेम दीवानी हाय ऐसे तो न रोती
एक प्रेम दीवानी हाय ऐसे तो न रोती
अरे हो इतना दुःख तो न होता
पानी में जो देते हमें डार
हमसे रूठ ले बिधाता हमार
ओ काहे रूठ ले बिधाता हमार
अचरा में फुलवा लई के
आये रे हम तोहरे द्वार
अरे हो हमरी अरजी न सुन ले
अरजी पे कर ले ना बिचार
हमसे रूठ ले बिधाता हमार
हो हमसे रूठ ले बिधाता हमार

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