Na Jaane
K K VERMA, LALITRAJ PANDIT, PANDIT JATIN
जाने क्यू हुआ जो हुआ
ना जाने क्यू हुआ जो हुआ
जाने क्यू हुआ जो हुआ
ना जाने क्यू हुआ जो हुआ
क्यू आँख फेरे हैं सवेरे
रूखे रूखे दिन यहाँ
क्यू सर झुकाई शाम आए
रात क्यू हैं वीरान
जाने क्यू हुआ जो हुआ
ना जाने क्यू हुआ जो हुआ
खाली खाली घर की दास्ताँ
सुने सुने मंज़र हर जगह
खाली खाली घर की दास्ताँ
सुने सुने मंज़र हर जगह
गुमसुम है गमोसे हर लम्हा
हमसे ही पूछता हैं बारहा
क्यू आज मायूसी के बदल
छा रहे हैं हार जगह
क्यू रास्तों में मोड़ आए
पास क्यू हैं दूरियाँ
जाने क्यू हुआ जो हुआ
ना जाने क्यू हुआ जो हुआ