Rohi

Shafqat Amanat Ali Khan

ओ जिंदादी बूझी ओ यार सजना
कभी मोह मोहर और आ वतन
ओ जिंदादी बूझी ओ यार सजना
कभी मोह मोहर और आ वतन
हे जिंदादि

रोही की अजब बहार है
रोही की अजब बहार है
जहां मुझे कमली का यार है
वहन आशिक उसके हजार हैं
और मैं नुमढ़ी हूं बे वतन
हो जिंदादी बूझी ओ यार

कहीं दूर जाए बस है जो
कहीं दूर जाए बस है जो
मेरे मन में जिसी छवि है
वो ना जले तन सुलगे जो
कैसे मिटेगी ये आगा
हो जिंदादी

रोही के पीर फरीद किस
रोही के पीर फरीद किस
बस चाह है इक डीड की
मुझे आस है हम ईद की
जो मिलाए बिछड़ा हुआ सजना
ओ जिंदादी बूझी ओ यार सजना
कभी मोह मोहर और आ वतन
हो जिंदादि

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