Tum Jo Naraz Ho To
तुम जो नाराज़ हो तो और हसीन लगती हो
तुम जो नाराज़ हो तो और हसीन लगती हो
डोर जेया के भी मूज़े डोर नहीं लगती हो
तुम जो नाराज़ हो तो और हसीन लगती हो
रूठी नज़रों में च्छूपी कोई अदा है जैसे
ज़ुलफ गुस्से में जो बिखरी तो घटा है जैसे
आँखें पल-पल जो पढ़ें महज़बीन लगती हो
डोर जेया के भी मूज़े डोर नहीं लगती हो
तुम जो नाराज़ हो तो और हसीन लगती हो
काँपते होंठ हैं, चेहरे का अजब रंग सा है
बिजलियाँ आँखों में हैं, देख के दिल डांग सा है
नज़र इस हुस्न को मेरी ना कहीं लगती हो
डोर जेया के भी मूज़े डोर नहीं लगती हो
तुम जो नाराज़ हो तो और हसीन लगती हो
तुम जो नाराज़ हो तो और हसीन लगती हो