Jab Bhi [Trance]

Vishal Bhardwaj, Gulzar

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फिर तलब
आए तलब
फिर तलब
आए तलब
है तलब, तलब
बेसबब, बेसबब
फिर तलब, तलब
शाम होने लगी है
शाम होने लगी
लाल होने लगी है
लाल होने लगी

जब भी सिग्गरेट जलती है
मैं जलता हूँ

आग पे पाँव पड़ता है
कम्बख़्त धुए में जलता हूँ

जब भी सिग्गरेट जलती है
मैं जलता हूँ

फिर किसीने जलाई
एक दिया सा-लाई
अ ह फिर किसीने जलाई
एक दिया सा-लाई
आसमान जल उठा है
शाम ने राख उड़ाई
उप्पले जैसा सुलगता हूँ
उप्पले जैसा सुलगता हूँ
कम्बख़्त धुए में जलता हूँ

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लंबे धागे धुए के
साँस सीलने लगे है
प्यास उजड़ी हुई हैं
होंठ च्चिलने लगे है
शाम होने लगी है
शाम होने लगी
लाल होने लगी है
लाल होने लगी

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Trivia about the song Jab Bhi [Trance] by Sunidhi Chauhan

Who composed the song “Jab Bhi [Trance]” by Sunidhi Chauhan?
The song “Jab Bhi [Trance]” by Sunidhi Chauhan was composed by Vishal Bhardwaj, Gulzar.

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