Drishyam [Vijay Prakash's Version]

Devi Sri Prasad, Amitabh Bhattacharya

सच लगता है झूठ जैसा है यह तेरी आँखों का करम
दृश्यम

जो यह देखती है सच है वो या है सच होने का भरम
दृश्यम

जितनी भी सुनवाइयाँ झूठ की हो सौ दुहैईयाँ
देके रहता है सच की गवाहियाँ
दृश्यम दृश्यम

शब्दों पे नही
दृश्यों पे धयान दो
क्यूँ-की शब्दों में झूठ
छुपने की जगह ढूँढ ही लेता है
लेकिन दृश्य
दृश्य कभी झूठ नही बोलते
इसलिए सवाल यह नही है के
आपके आँखों के सामने क्या है
सवाल यह है के आप देख क्या रहे हो

झूठ में तो काई राज़ छुपते हैं खा के झूठी सी कसम
दृश्यम दृश्यम

राज़ रह के भी रह नही पता है यह सच का धरम
दृश्यम दृश्यम

झूठी लड़के लड़ाइयाँ झूठ देता है सफाइयाँ
लाके रहता है झूठ की तबाहियाँ

दृश्यम दृश्यम
दृश्यम दृश्यम

हो हो हो हो हो हो हो हो (हो हो हो हो)

एक झूठ को छुपाने में तो लाखों झूठ पद गये कम
दृश्यम दृश्यम

एक सच काफ़ी तोड़ने के लिए हर झूठ का अहम
दृश्यम दृश्यम

झूठ के कारावास में दूं तोड़ने से पहले
देना चाहता है सच को रिहाइयाँ

दृश्यम दृश्यम
दृश्यम दृश्यम

आ आ आ आ आ आ आ आ आ (आ आ आ)

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