Matlabi [Interlude]
कहानी उस दिन की
बुज़दिल सी सोच मे था
ना जाने चुप चाप में किस बात की खोज मे था
अकेला घर मे, ये ज़िम्मेदारी सर पे
बैठा कमरे मे तभी बचपन का दोस्त दिखा
देखके पूछा मेने, "यहा कैसे भाई तू
Call कर देता इतनी मिलने की थी घाई क्यू
कितने साल के बाद! घरपे सभ ठीक ना
ना बोला कुच्छ भी, पर आख़िर मे चीखा की
चुप्प
बोला मुझे भाई कैसे
हाथ था ये दोस्ती का, मोड़ी तूने ये कलाई कैसे
हम तो साथ में पले बड़े हम साथ खेले
साथ में स्कूल गये और साथ में ही डाट झेले
ग़लती है मेरी की लगाई ये उम्मीद तुझसे
सोचा की खाई से निकालेगा ये भाई खुदसे
साला मतलबी
ना किया तूने याद कभी
या था मै वो सामान, जिससे तू आज़ाद सही
क्या कहा गया है
जाग प्यारे चल ना जाने
स्वप्न पूरा हो ना हो
नीड के पंछी उड़े है
फिर बसेरा हो ना हो
हम मनुज लाचार है उड़ते समय के सामने
कौन जाने रात बीतें
फिर सवेरा, हो