Khuda
Manan Bhardwaj
मुझे यूँ ही करके ख़्वाबों से जुदा
जाने कहाँ छुप के बैठा है खुदा
जानूँ ना मैं कब हुआ खुद से गुमशुदा
कैसे जियूँ? तू भी मुझसे है जुदा
क्यूँ मेरी राहें हैं मुझसे पूछें, "घर कहाँ है
हाँ, क्यूँ मुझसे आ के
हाँ, दस्तक पूछे, "दर कहाँ है
हाँ, राहें ऐसी, इनकी मंज़िल ही नहीं
हाँ, ढूँढो मुझे, अब मैं रहता हूँ वहीं
दिल है कहीं और धड़कन है कहीं
साँसें हैं, मगर क्यूँ ज़िंदा मैं नहीं
रेत बनी, हाथों से यूँ बह गई
तक़दीर मेरी बिखरी हर जगह
कैसे लिखूँ फिर से नई दास्ताँ
ग़म की सियाही दिखती है कहाँ
आहें जो चुनी हैं, मेरी थी रज़ा
रहता हूँ क्यूँ फिर खुद से ही ख़फ़ा
ऐसी भी हुई थी मुझसे क्या ख़ता
तूने जो मुझे दी जीने की सज़ा