Ud Ud Re
Aakanksha sharma, Mehfooz
चांदी का मैं पंख थारे सोने की चोंच मंडाऊ मैं
सायब आवे तो कागा थारा जन्म-जन्म गुण गांउ मैं
उड़ उड़ रे म्हारा काला रे कागला
जद म्हारा सायब घर आवे
जद सायब घर आवे
खीर खांड रा जीमण बना हांथा सूं चूगो चुगाऊं
तू मन्ह प्यारो लागे थांपे मैं बलिहारी जाऊं
पगल्या मे थारे बांधूं रे घूघरा - २
गले में हार पिराऊं कागा
जद म्हारा सायब घर आवे
थांसू कुछ भी छिपी नहीं है तू जाने म्हारे मन की
बिना साहिबा के ओ कागा सुध बुध रहे न तन की
बेगो सो अब सुगन मना तू - २
और किया में समझाऊं कागा
जद म्हारा सायब घर आवे