Agni Desh Se Aata Hoon Main
HARIVANSH RAI BACHCHAN, MURLI MAHOHAR SWARUP
अग्नि देश से आता हूँ मैं
झुलस गया तन, झुलस गया मन
झुलस गया कवि-कोमल जीवन
किंतु अग्नि-वीणा पर अपने दग्ध कंठ से गाता हूँ मैं
अग्नि देश से आता हूँ मैं
कंचन ही था जो बच पाया
उसे लुटाता आया मग में
दीनों का मैं वेश किए, पर दीन नहीं हूँ, दाता हूँ मैं
अग्नि देश से आता हूँ मैं
तुमने अपने कर फैलाए
लेकिन देर बड़ी कर आए
कंचन तो लुट चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं
अग्नि देश से आता हूँ मैं