Zindagi Is Tarah

ANU MALIK

ज़िन्दगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगी दरारों से

मैं तेरे जिस्म की हूँ परछाई
मुझको कैसे रखोगे खुद से जुदा
भूल करना तो मेरी फितरत है
क्यूँ की इन्साँ हूँ मैं नहीं हूँ खुदा
क्यूँ की इन्साँ हूँ मैं नहीं हूँ खुदा
मुझको है अपनी हर खता मंजूर
भूल हो जाती है इंसानों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगी दरारों से

जब कभी शाम के अंधेरों में
राह पंछी जो भूल जाते हैं
वो सुबह होते ही मीलों चलकर
अपनी शाखों पे लौट आते हैं
अपनी शाखों पे लौट आते हैं
कुछ हमारे भी साथ ऐसा हुआ
हम यही केह रहे इशारों से
ज़िन्दगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से

Trivia about the song Zindagi Is Tarah by Anuradha Paudwal

Who composed the song “Zindagi Is Tarah” by Anuradha Paudwal?
The song “Zindagi Is Tarah” by Anuradha Paudwal was composed by ANU MALIK.

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