Koi Raat Aisi Bhi Aaye

Ustad Ghulam Ali

कोई रात ऐसी भी आए के
ये मंज़र देखूं
कोई रात ऐसी भी आए के
ये मंज़र देखूं
तेरी पेशानी हो और
अपना मुक़द्दर देखूं
कोई रात ऐसी भी आए के
ये मंज़र देखूं

सारे मोसां तेरे आ
जाने से लगते हैं बहार
सारे मोसां तेरे आ
जाने से लगते हैं बहार
जब भी देखूं तुझे
आ जाए मेरे दिल को करार
सोचता हूँ तुझे
पॅल्को पे साझा के देखूं
कोई रात ऐसी भी आए के
ये मंज़र देखूं

किसको बतलाओ यहाँ क्या
हैं ज़माने के सितम
किसको बतलाओ यहाँ क्या
हैं ज़माने के सितम
कैसे दिखलौं यहाँ
मैं तेरा आईना ए घूम
लब हिलाओ तो हर एक हाथ
में पत्थर देखूं
कोई रात ऐसी भी आए
के ये मंज़र देखूं

जब अंधेरा हो झाला
देती हैं सम्मे अक्सर
जब अंधेरा हो झाला
देती हैं सम्मे अक्सर
लोग कहते हैं साड्डा
हैं तेरी शोला पेटल
घूँगुना यूँ तेरी
आवाज़ को च्छुकर देखूं
कोई रात ऐसी भी आए
के ये मंज़र देखूं
तेरी पेशानी हो और
अपना मुक़द्दर देखूं
कोई रात ऐसी भी आए
के ये मंज़र देखूं.

Trivia about the song Koi Raat Aisi Bhi Aaye by Ghulam Ali

Who composed the song “Koi Raat Aisi Bhi Aaye” by Ghulam Ali?
The song “Koi Raat Aisi Bhi Aaye” by Ghulam Ali was composed by Ustad Ghulam Ali.

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