Rahe - Ishq Ki Intiha Chahta Hoon

Sant Darshan Singh Ji Maharaj

रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

जो इरफ़ान की ज़िंदगी को बढ़ा दे
जो इरफ़ान की ज़िंदगी को बढ़ा दे
जो इरफ़ान की ज़िंदगी को बढ़ा दे
मैं वो वादाए जान फ़िज़्ज़ा चाहता हूँ
मैं वो वादाए जान फ़िज़्ज़ा चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

मिटा कर मुझे आप में जज़्ब कर ले
मिटा कर मुझे आप में जज़्ब कर ले
मिटा कर मुझे आप में जज़्ब कर ले
बका के लिए मैं फन्ना चाहता हूँ
बका के लिए मैं फन्ना चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

बया हेल दिल मैं करू क्यूँ ज़बान से
बया हेल दिल मैं करू क्यूँ ज़बान से
बया हेल दिल मैं करू क्यूँ ज़बान से
कूड़ा जनता हैं मैं क्या चाहता हूँ
कूड़ा जनता हैं मैं क्या चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

मेरे चरागर मैं हूँ बीमार तेरा
मेरे चरागर मैं हूँ बीमार तेरा
मेरे चरागर मैं हूँ बीमार तेरा
तेरे हाथ से ही शिफा चाहता हूँ
तेरे हाथ से ही शिफा चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
जुनून सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
रहे-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

Trivia about the song Rahe - Ishq Ki Intiha Chahta Hoon by Ghulam Ali

Who composed the song “Rahe - Ishq Ki Intiha Chahta Hoon” by Ghulam Ali?
The song “Rahe - Ishq Ki Intiha Chahta Hoon” by Ghulam Ali was composed by Sant Darshan Singh Ji Maharaj.

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