Ghunghroo Ki Tarah

RAVINDRA JAIN

घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में
कभी इस पग में कभी उस पग में
बंधता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

कभी टूट गया कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा ही गया हो हो हो हो
कभी टूट गया कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा ही गया
यूँ ही लुट-लुट के और मिट-मिट के
यूँ ही लुट-लुट के यूँ ही मिट-मिट के
बनता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

अपनों में रहा या गैरों में
घुंघरू की जगह तो है पैरों में हो हो हो हो
अपनों में रहा या गैरों में
घुंघरू की जगह तो है पैरों में
ये कैसा गिला जग से जो मिला
ये कैसा गिला जग से जो मिला
सहता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में
बंधता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

Trivia about the song Ghunghroo Ki Tarah by Kishore Kumar

Who composed the song “Ghunghroo Ki Tarah” by Kishore Kumar?
The song “Ghunghroo Ki Tarah” by Kishore Kumar was composed by RAVINDRA JAIN.

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