Jane Kya Sochkar
जाने क्या सोचकर नहीं गुज़रा
जाने क्या सोचकर नहीं गुज़रा
इक पल रात भर नहीं गुज़रा
जाने क्या सोचकर नहीं गुज़रा
अपनी तनहाई का औरों से ना शिकवा करना
अपनी तनहाई का औरों से ना शिकवा करना
तुम अकेले ही नहीं हो सभी अकेले हैं
ये अकेला सफ़र नहीं गुज़रा
जाने क्या सोचकर नहीं गुज़रा
दो घड़ी जीने की मोहलत तो मिली है सबको
दो घड़ी जीने की मोहलत तो मिली है सबको
तुम भी मिल जाओ घड़ी भर तो ये ग़म होता है
इस घड़ी का सफ़र नहीं गुज़रा
जाने क्या सोचकर नहीं गुज़रा
इक पल रात भर नहीं गुज़रा
जाने क्या सोचकर नहीं गुज़रा