Advent Of Krishna

चाय घोर ामशी आओ हरि ाओ
साडी धरती है प्यासी
आओ हरि ाओ हरि ाओ
धरती को घर बनाने
दुःख सारे दूर भगाने
अँधियारे सरे मिटने
सूरज सा जगमगाने आएगा
झूमो रे नाचो
रे सब मिल गाओ रे
प्रीती की धुन
लेके हरी आएंगे
पलके बिझाओ रे
मंगल सब गाओ रे
मानव का रूप
लेके हरी आएंगे
आयेगा कोई आएगा
सब पे छा जायेगा
तन मन से नैया
को पार लगाने व
आयेगा कोई आएगा
मन में छा जायेगा
रोटी सी धरती को
खिल खिल हँसाने वो

पर्वत सागर मट्टी
बदल सब में उसका वास है
कोयल गए झींगुर
बोले उसकी ही आवाज़ है
हो उसका दरस दिखे
हर एक आत्मा की प्यास है
आना हरी आना अब तो
तुझसे साडी ास है
अब रे भई देखो
गालिया भय देखो
तीनो लोको के वासी
सवागत को ए
आयेगा कोई आएगा
सब पे छा जायेगा
तन मन से नैया
को पार लगाने व
आयेगा कोई आएगा
मन में छा जायेगा
रोटी सी धरती को
खिल खिल हँसाने वो

भटका भुला भुला
मनवा जब भी अपनी राह तो
लगा लगा वसुंधरा
को दुखो का शाप तो
हो बड़ा चला बड़ा
जब धरती पे पाप् तो
आया हरी आया करने
पाप का विनाश हो
कभी तो राह पवन
नाम बनवाया हो
इन पलकों में साडी
सृष्टि है बाटी
आयेगा कोई आएगा
सब पे छा जायेगा
तन मन से नैया
को पार लगाने व
आयेगा कोई आएगा
मन में छा जायेगा
रोटी सी धरती को
खिल खिल हँसाने वो.

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