Mann Beqaid Huva

Prasant Ingole, Ravindar Randhava

मिटटी जिस्म की गीली हो चली
मिटटी जिस्म की
खुश्बू इसकी रूह तक घुली
खुश्बू इसकी
इक लम्हा बनके आया है
इक लम्हा बनके आया है
संग ज़ख़्मों का वैध
मन बेक़ैद हुवा
मन बेक़ैद
मन बेक़ैद हुवा
मन बेक़ैद

रफ्ता रफ्ता मुश्किलें
अपने आप खो रही
इत्मीनान से काश्मकश कही जाके सो रही
दस्तक देने लगी हवा अब चटानों पे
ज़िंदा हो तोह किसका बस है अरमानों पे
कोई सेहरा बांधे आया है
साध ज़ख़्मों का वैध
मन बेक़ैद हुवा
मन बेक़ैद
मन बेक़ैद हुवा
मन बेक़ैद

अब तलक जो थे दबें
राज़ वो खुल रहे
दरमियान की फसलें
इक रंग में घुल रहे
दो साँसों से जली जो लौ अब वो खफ्फी है
मेरी भीतर कुछ न रहा पर तू बाकि है
इक कतरा बनके आया है
साध ज़ख़्मों का वैध
मन बेक़ैद हुवा
मन बेक़ैद
मन बेक़ैद हुवा
मन बेक़ैद

Trivia about the song Mann Beqaid Huva by Sonu Nigam

Who composed the song “Mann Beqaid Huva” by Sonu Nigam?
The song “Mann Beqaid Huva” by Sonu Nigam was composed by Prasant Ingole, Ravindar Randhava.

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